डुबो दी कश्तियाँ जिसने, ज़रा से कुछ इशारों पर॥
लहर बेजार अब वो , सर पटकती है किनारों पर॥
खुली जो आँख तो पाया ,की सूरज सर पे आ पहुंचा।
बसा रक्खी थी ख्वाबो में, ये दुनिया चाँद तारो पर॥
ये दामन छोड़ कर पायेंगे क्या, हम फ़िर संभलने को।
पड़ी ये बूँद है सहरा में , प्यासे बेसहारों पर॥
अमल
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आप के क़लाम ने ईमान लूट लिया.
ReplyDeleteAmalji
ReplyDeleteखुली जो आँख तो पाया ,की सूरज सर पे आ पहुंचा।
बसा रक्खी थी ख्वाबो में, ये दुनिया चाँद तारो पर॥
bahut khoob . keep it up. congretulations!
wah zanaab wah..
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