Wednesday, January 14, 2009

waqt

डुबो दी कश्तियाँ जिसने, ज़रा से कुछ इशारों पर॥
लहर बेजार अब वो , सर पटकती है किनारों पर॥


खुली जो आँख तो पाया ,की सूरज सर पे आ पहुंचा।
बसा रक्खी थी ख्वाबो में, ये दुनिया चाँद तारो पर॥

ये दामन छोड़ कर पायेंगे क्या, हम फ़िर संभलने को।
पड़ी ये बूँद है सहरा में , प्यासे बेसहारों पर॥
अमल

3 comments:

  1. आप के क़लाम ने ईमान लूट लिया.

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  2. Amalji

    खुली जो आँख तो पाया ,की सूरज सर पे आ पहुंचा।
    बसा रक्खी थी ख्वाबो में, ये दुनिया चाँद तारो पर॥
    bahut khoob . keep it up. congretulations!

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